गुलजार साहब की अनोखी शायरी | GULZAR SAHAB POPULAR SHAYARI | GULZAR SAHAB


गुलजार साहब / GURJAR SAHAB
☞ तरस आता है मुझे अपनी मासूम सी पलकों पर।
जब वह भीग कर कहती है कि अब रोया नहीं जाता।।

☞ कुछ तो मजबूरियां रही होंगी।
यूं ही कोई बेवफा नहीं होता।।

☞ माना कि मौसम भी बदलते हैं मगर धीरे-धीरे।
तेरे बदलने की रफ्तार से तो हवाएं भी हैरान है।।

☞ यूं सरसरी निगाह से देखा ना कीजिए जनाब।
पढ़िए ना मुझको मांग के अखबार की तरह।।

☞ दोस्ती किससे ना की थी किससे मुझे प्यार ना था।
लेकिन जब बुरा वक्त आया तो कोई यार साथ ना था।।

☞ तेरे बगैर किसी और को देखा नहीं मैंने।
सूख गया वह तेरा गुलाब मगर फेंका नहीं मैंने।।

☞ ये दिल तू क्यों रोता है।
ये दुनिया है यहां ऐसा ही होता है।।

☞ हाथ तो सबने छोड़ा इस राहे मंजिल में मगर।
एक गरीबी तू इतनी वफादार कैसे निकली।।

☞ दरवाजा छोटा ही रहने दो अपने मकान का साहब।
जो झुक के आ गया समझ लो वही अपना है।।

☞ चैन से रहने का हमको यूं मशवरा ना दीजिए।
मजा आने लगा है अब जिंदगी की मुश्किलों में भी।।

☞ जिंदगी उसी की है जिसकी मौत पर जमाना अफसोस करें।
यूं तो गालिब हर शख्स दुनिया में आता है मरने के लिए।।

☞ रफ्तार जिंदगी की कुछ यूं बनाए रख।
कि दुश्मन भले ही आगे निकल जाए पर दोस्त कोई पीछा ना छूटे।।

☞ यूं तो बहुत लोग मिले जिंदगी में।
बस सिर्फ वह नहीं मिला जिसकी आरजू हर दुआ में की थी।।

☞ हालात सिखा देती है बातें सुनना और सहना।
वरना हर शख्स अपने आप में बादशाह होता है।।

☞ एक रास्ता यह भी है मंजिल को पाने का।
सीख लो तुम भी हुनर हां में हां मिलाने का।।

☞ किस उम्र से पढ़ा जाए और किस उम्र में कमाया जाए।
ये शौक नहीं उम्र तय करती है।।

– सौरव ज्ञाना
MOTIVATIONAL SPEAKER & GS TEACHER



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