जीवन जीने की कला – ओशो
जय हिंद मेरे प्रिय पाठक गण, आज के इस लेख में हम सब पढ़ेंगे जीवन जीने की कला। मेरे प्रिय पाठक गण यह लेख ओशो जी के व्याख्यान पर आधारित है। इस लेख में हम आपको जीवन जीने की कला के सूत्र और कुछ पंक्तियों के ऊपर विश्लेषण करेंगे। मुझे उम्मीद है कि आप इस विश्लेषण को बेहतर रुचि के साथ सीख पाएंगे, और अपने सगे संबंधियों के साथ भी इस लेख को साझा करेंगे।
बचपन से आज तक जिस ढंग से हमारा पालन-पोषण हुआ है, जो शिक्षा व संस्कार हमें परिवार व समाज से मिले हैं उसके परिणाम स्वरूप हमारा जीवन दुःख, तनाव, पीड़ा व चिन्ताओं का जोड़ बन कर रह गया है। इनके पार आनंदित जीवन कैसे जीएं? प्रस्तुत है ओशो प्रवचनों से संकलित ‘जीवन जीने की कला’। ओशो के दृष्टिकोण को समझें तो आपको इसके मर्म की सही जानकारी होगी।
ओशो कहते हैं हम सुख-दुःख के पार आनंदित जी सकते हैं। कैसे ?
“जीवन को जानने की सम्भावना तो तभी है, जब हमारा व्यक्तित्व एक ओपनिंग एक द्वार बन जाये। गीत के लिए, हवाओं के लिए, सौन्दर्य के लिए, संगीत के लिए, सुगन्ध के लिए, सब तरफ हमारा जीवन एक द्वार बन जाये।”
– ओशो
“आज हम धरती को नष्ट कर रहे हैं, जो इस विशाल ब्रह्मांड में एकमात्र स्थान है, एक छोटा-सा ग्रह जो चेतना के सर्वोच्च शिखर पर आ गया है। यह केवल मानवता के प्रति ही अपराध नहीं है बल्कि पूरे ब्रह्मांड के प्रति अपराध है।”
– ओशो
मौत यदि रुकती नहीं, तो जन्म भी रुकता कहां है!
एक क्षण यदि और है तो दूसरा क्षण और कुछ है,
रूप पल पल पर बदल कर और कुछ है और कुछ है!
यह अखंड विधान जग में रच भी झुकता कहां है।
मौत यदि रुकती नहीं...
यदि तुम्हारे वक्ष में है सांस बांहों में भरा बल,
काल-सरिता की लहर पर आंक दो गति-चित्र निर्मल।
सिंधु समझो बिंदु पर यह बिंदु में चुकता कहां है!
मौत यदि रुकती नहीं...
दुःख केवल दुःख ही यदि सत्य है तो और क्या है?
अश्रु सिंचित हास पुलकित जिंदगी फिर और क्या है? जिंदगी का मोल केवल मौत से चुकता कहां है?
मौत यदि रुकती नहीं...
शुभ कार्य के लिए मुहूर्त निकलवाते हैं और अशुभ कार्य (काम, क्रोध, लोभ इत्यादि) तत्क्षण करते हैं। सोचे समझे महामंत्र का उपयोग कब करना है।
– ओशो
दोस्तों जीवन का सच तो यही है की मौत से बड़ा विश्राम कहीं नहीं है। मौत जीवन की सबसे बड़ा मित्र क्योंकि यह मित्र आपको एक नया जीवन देती है, नया शरीर देती है, नई जगह देती है, नई समाज देती है, और तो और नए संस्कार के साथ-साथ नए विचार भी देती है। इसलिए मौत को मित्र माने दुश्मन नहीं।
@ सौरव ज्ञाना
Motivational Speaker & GS TEACHER